सुप्रीम कोर्ट में व्यभिचार पर कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी
सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार पर दंडात्मक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली है. इसका फैसला बाद में सुनाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से जानना चाहा कि व्याभिचार संबंधी कानून से जनता की क्या भलाई है क्योंकि इसमें प्रावधान है कि यदि स्त्री के विवाहेत्तर संबंधों को उसके पति की सहमति हो तो यह अपराध नहीं होगा. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केन्द्र से यह सवाल किया. केन्द्र ने संविधान पीठ से कहा कि व्याभिचार अपराध है क्योंकि इससे विवाह और परिवार बर्बाद होते हैं. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं. व्यभिचार यानी जारता (विवाहित महिला के पर पुरुष से संबंध) को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस धारा के तहत अगर किसी विवाहित महिला का पर पुरुष से संबंध हो और अपराध सिद्ध हो तो सिर्फ पुरुष को सजा मिलती है. याचिका में कहा गया है कि महिला को क्यों छूट मिली हुई है? व्यभिचार यानी जारता को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने IPC की