संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट को अदालती प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है या नहीं मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा कि संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट पर अदालत अपने फैसले में भरोसा कर सकती है. पीठ ने कहा कि संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट का कोर्ट द्वारा इस्तेमाल संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं है. लेकिन संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती.
पांच जजों का संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है कि क्या कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 136 के तहत दाखिल याचिका पर कोर्ट संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट को रेफरेंस के तौर ले सकती है और इस पर भरोसा कर सकता है ? क्या ऐसी रिपोर्ट को रेफरेंस के उद्देश्य से देखा जा सकता है और अगर हां तो किस हद तक इस पर प्रतिबंध रहेगा.ये देखते हुए कि संविधान के अनुच्छेद 105, 121, और 122 में विभिन्न संवैधानिक संस्थानों के बीच बैलेंस बनाने और 34 के तहत संसदीय विशेषाधिकारों का प्रावधान दिया गया है.
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा ह्युमन पापिलोमा वायरस ( HPV) के लिए टीके की इजाजत देने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. ये टीका ग्लैक्सो स्मिथ क्लिन एशिया लिमिटेड और एमएसडी फार्मास्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड बना रहे थे जो महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए था और टीके के लिए प्रयोग पाथ इंटरनेशनल की मदद से गुजरात व आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा था. ये मामला इस दौरान कुछ लोगों की मौत होने और मुआवजा देने के मुद्दे पर उठा.