बिजली वितरण क्षेत्र में सुधार, क्षमताओं का पूर्ण उपयोग जरूरी : इंडिया एनर्जी फोरम
सरकार के विद्युत क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाने तथा परियोजनाओं के कुशलतम और पूर्ण क्षमता पर उपयोग से उपभोक्ताओं को न केवल गुणवत्तापूर्ण 24 घंटे बिजली मिलेगी बल्कि यह अपेक्षाकृत सस्ती भी होगी। साथ ही इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने और आर्थिक वृद्धि को गति देने में भी मदद मिलेगी।
इंडिया एनर्जी फोरम के अध्यक्ष अनिल राजदान ने राजदान ने ‘ भाषा ’ से बातचीत में कहा , ‘‘ बिजली क्षेत्र में काफी सुधार और निवेश हुआ है। हमारी उत्पादन और पारेषण क्षमता अच्छी खासी बढ़ी है। अब सुधारों को अगले स्तर पर ले जाने की जरूरत है। इसमें वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार के साथ परियोजनाओं को वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक बनाने और क्षमता का कुशलतम पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना जरूरी है। ’’ केंद्र सरकार में बिजली सचिव रह चुके राजदान का कहना है कि वितरण क्षेत्र में सुधार से एक तरफ जहां उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण 24 घंटे बिजली मिलेगी वहीं दूसरी तरफ यह सस्ती भी हो सकती है। ’’ गौरतलब है कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) बिजली क्षेत्र में व्यापक सुधारों के तहत पहली बार उपभोक्ता केंद्रित वितरण क्षेत्र के लिये योजना तैयार कर रहा है। इसमें सभी घरों में अगले तीन साल में प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाना , सभी को मीटर के दायरे में लाना तथा सब – स्टेशन की क्षमता बढ़ाना आदि शामिल हैं।
मंत्रालय के अनुसार देश में बिजली उत्पादन क्षमता मई, 2019 की स्थिति के अनुसार 3,56,818 मेगावाट पहुंच गयी है। वहीं पारेषण क्षमता जून, 2019 की स्थिति के मुताबिक 4,15,517 सर्किट किलोमीटर हो गयी है।
राजदान ने कहा , ‘‘ उत्पादन और पारेषण व्यवस्था में अच्छी खासी राशि लगी है। अब अगर वितरण क्षेत्र से पैसा नहीं आएगा तो और सुधारों के लिये धन कहां से आएगा तथा ग्राहकों को गुणवत्तापूर्ण 24 घंटे बिजली केसे मिलेगी ? हमारी उत्पादन और पारेषण क्षमता बेहतर है जबकि बिजली वितरण कंपनियों के स्तर पर समस्या है। इसी को ध्यान में रखकर वितरण योजना तैयार की जा रही है। ’’ विद्युत वितरण क्षेत्र सकल तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान (एटी एंड सी), एक वर्ग को सस्ती बिजली देने के लिये दूसरे से ऊंचा मूल्य वसूलने (क्रास सब्सिडी) जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। बिजली मंत्रालय के अनुसार फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर औसत एटी एंड सी नुकसान 18 प्रतिशत से अधिक है। वहीं बिहार , उत्तर प्रदेश , झारखंड जैसे राज्यों में यह कहीं ज्यादा है।
इस बारे में इंडिया एनर्जी फोरम के अध्यक्ष ने कहा , ‘‘ सतत , गुणवत्तापूर्ण और व्यावहारिक आपूर्ति व्यवस्था के लिये एटी एंड सी नुकसान को 10 प्रतिशत से नीचे लाने की जरूरत है। साथ ही क्रास सब्सिडी (एक वर्ग को ऊंची दर पर बिजली बेच कर दूसरे वर्ग के लिए सस्ती बिजली देने की व्यवस्था) को समाप्त कर उसकी जगह जरूरतमंदों को बिजली की सब्सिडी सीधे डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ अंतरण) के जरिये उनके खाते में देने की जरूरत है। ’’ बिजली क्षेत्र में व्यापक सुधारों पर जोर देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 के बजट में बिजली वितरण कंपनियों को वित्त और परिचालन के स्तर पर सुधार लाने की योजना उदय (उज्ज्वल डिस्कॉम आश्वासन योजना) को और प्रभावी बनाने के साथ क्रास सब्सिडी , खुली बिक्री पर अवांछनीय शुल्क जैसे अवरोधों को दूर करने के लिये राज्यों के साथ मिलकर काम करने की बात कही है।
एक सवाल के जवाब में राजदान ने कहा , ‘‘ घरेलू उपभोक्ताओं के साथ वाणिज्यिक और संस्थागत ग्राहकों को अगर सतत बिजली मिलती है तो उन्हें डीजल चालित जेनरेटर जैसी वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत नहीं होगी। इससे एक तरफ उत्सर्जन कम होगा वहीं उत्पादकता बढ़ेगी और उत्पादक प्रतिस्पर्धी होंगे। इससे अंतत : आर्थिक वृद्धि को गति मिलेगी।